रूबरू
मैं रूबरू हूँ तेरी, सारी आफतो से।
मैं रूबरू हूँ तुझपे, गुजरी हर व्यथा से।।
मैं रूबरू हूँ तेरे, अश्कों के मोतियों से।
मैं रूबरू हूँ तेरे, जख्मों के आंसुओं से।।
तू मुझसे आके कहदे, हर बात अपने मन की
मैं रूबरू ना होता, क्यों पास तेरे होता?
मैं रूबरू ना होता, क्यों सर पे हाथ होता?
मैं रूबरू ना होता, क्यों सांत्वना मैं देता?
मैं रूबरू ना होता, क्यों दिल तुझे मैं देता?
तू मुझसे आके कहदे, हर बात अपने दिल की
मैं रूबरू ना होता, कुछ हल और होता।
मैं रूबरू ना होता, तू बेहाल और होता।।
मैं रूबरू ना होता, कुछ जाल और होता।
मैं रूबरू ना होता, तू खुद पे सवाल होता।।
तू मुझसे आके कहदे, हर बात अपने मन की
मैं रूबरू हुआ क्यों, ये बात पूछ ले तू?
मैं रूबरू हुआ क्यों, ये राज पूछ ले तू?
मैं रूबरू हुआ क्यों, ये आज पूछ ले तू?
मैं रूबरू हुआ क्यों, ये साज पूछ ले तू?
तू मुझसे आके कहदे, हर बात अपने दिल की
मैं रूबरू हुआ हूँ, तू भटके ना कभी भी।
मैं रूबरू हुआ हूँ, तू अटके ना कभी भी।।
मैं रूबरू हुआ हूँ, तू बिखरे ना कभी भी।
मैं रूबरू हुआ हूँ, तू पलटे ना कभी भी।।
तू मुझसे आके कह दे, हर बात अपने मन की
मैं रूबरू हूँ तुझसे, तेरी अनकही कथा से।
मैं रूबरू हूं तुझसे, तेरी अनकही व्यथा से।।
मैं रूबरू हूँ तुझसे, तेरी अनकही रजा से।
मैं रूबरू हूँ तुझसे, तेरी अनकही सजा से।।
तू मुझसे आके कह दे, हर बात अपने दिल की
मैं आस दे रहा हूँ और विश्वास दे रहा हूँ।
मैं आज तुझको अपना, संदेश दे रहा हूँ।।
मैं तेरे लिए ही आया, यह बात कह रहा हूँ।
मैं रक्षा तेरी करूँगा, यह साफ कह रहा हूँ।।
तू मुझसे आके कह दे, हर बात अपने मन की
विश्वास को कभी ना, तू तोड़ के ना जाना।
संदेश को कभी भी, तू भूल के ना जाना।।
तू मुझसे आके कहदे, हर बात अपने दिल की
मैं रूबरू हूँ तेरी….
ललकार भारद्वाज