Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
24 Feb 2024 · 4 min read

#सामयिक_व्यंग्य…

#सामयिक_व्यंग्य…
◆”आ बैल! मुझे मार” से बचें मास्टर
★ दिल खोल कर बांटें नम्बर
【प्रणय प्रभात】
माध्यमिक शिक्षा मंडल की परीक्षा सम्पन्न होने से पहले मूल्यांकन कार्य का श्रीगणेश हो चुका है। ऐसे में एक समयोचित सलाह मन से देने का आज दिल कर रहा है। ध्यान से पढ़ेंगे तो मुनाफे में रहेंगे। कहना यह है कि- हायर सेकेंडरी और हाई स्कूल परीक्षा की उत्तर-पुस्तिकाओं का मूल्यांकन करने वाले शिक्षकगण मामूली सी उदारता बरतें। ताकि अनचाही मुसीबत उनके सिर न आन पड़े। अगर वे देश के भविष्य मासूम बच्चों को अंक देते समय कृपणता की जगह उदारता बरतेंगे तो कोई आपदा नहीं आने वाली। सालाना परीक्षा का नतीजा ठीक रहेगा तो प्रयोगशाला बने प्रदेश की शिक्षा प्रणाली के सारे ऐब छुपे रह सकेंगे। शिक्षा को परखनली में डाले रखने के सरकारी मंसूबो पर आघात नहीं होगा। मुखिया जी और चौपालियों को थोथे गाल बजाने का मौका मिलेगा।
मदमस्त सरकार और निरंकुश अफ़सर ख़ुश होंगे तो आप पर गाज गिरना टल जाएगा। साथ ही अभिभावक और बच्चे भी हंड्रेड परसेंट संतुष्ट रहेंगे। उन्हें पुनर्मूल्यांकन के नाम पर लूट से छूट मिलेगी सो अलग। आपको भी कार्यवाही के नाम पर आर्थिक और मानसिक यंत्रणा से मुक्ति मिलेगी। जिसके लिए सरकारी दामाद लठ और झोला लेकर तैयार बैठे हुए हैं। हर साल की तरह, गिद्ध-दृष्टि लगाए। वैसे भी साल चुनावी और माहौल तनावी है। तभी तो कही परीक्षा से पहले पर्चे वायरल हो रहे हैं। तो कहीं ओटी वाले सवालों के जवाब केंद्रों तक पहुंच रहे हैं। बिल्कुल वैसे ही जैसे जेलों में बंद माफियाओं तक मोबाइल, हथियार और बाक़ी सामान पहुंचते हैं।
कुल मिला कर सवाल सरकारी भांजे-भांजियों के भविष्य की इमारत का है। फिर चाहे वो अवैध उत्खनन से निकली माफ़ियाई बालू पर ही क्यों न बन रही हो। आगे गिरे तो गिर जाए। न योग्य पैदा होंगे, न सरकारी जंवाई बन पाएंगे। घूमते रहेंगे कागज़ी अंकसूची लेकर। सूबे की साक्षरता दर तो बढाएंगे कम से कम। बिना मेहनत अच्छी श्रेणी पाएंगे तो पात्रता परीक्षा के पात्र बनेंगे। जितने ज्यादा पात्र होंगे उतनी ही तेज़ी से सरकार का भिक्षा-पात्र भरेगा। जीडीपी और इकोनॉमी आगे बढ़ेगी। डॉलर के मुकाबले रुपैया ताकतवर बबेगा।
फाइव-ट्रिलियन की इकोनॉमी बनाने में अकेला यूपी ही बाज़ी क्यों मारे? हर मामले में नवाचार की जगह नक़ल पर निर्भर “हार्ट-स्टेट” की साख क्यों गिरे, जिसे अगले 5 साल में “फेंफड़ा-प्रदेश” बनाने के बाद 10 साल में “गुर्दा-प्रदेश” बनाने की शपथ उठानी है? सरकार के अगाडी और गधे के पिछाड़ी चलने का हश्र पता न हो तो काहे के मास्टर? बच्चों को जयकारा नहीं सिखा पाओगे तो भीड़ का हिस्सा कैसे बनाओगे। जिस पर सियासत की हर नौटंकी की सफलता का किस्सा टिका है।
जबरन चाणक्य बनने की चेष्टा क्यों करना। वो भी “नंद” के बापों के साम्राज्य में, जहां “आह” भरना तो दूर, उसकी “चाह” तक करना “गुनाह” है। ऐसे में बेहतर है कि आप चुनावी साल की समयोचित सलाह को मानें। एकाध अंक बढा कर ही दें ताकि विद्यार्थियों के साथ आपका अपना भी भला हो। आशय किसी को धक्का देकर अगली कक्षा में भेजने का नहीं है। उसके लिए “रुक न जाना” जैसी “सःशुल्क” सेवा सरकार ख़ुद दे ही रही है। आप बच्चों को जबरन उत्तीर्ण करेंगे तो दयनीय राजकोष और दुर्बल हो जाएगा। ऐसे में निर्णय व नियंत्रण के मामले में निर्बल सरकार के सबल सिपहसालार “बढ़ न जाना” जैसी नई “योजना” गढ़ना शुरू कर देंगे। जो कल को आप जैसे खरबूजों के लिए “दुधारी छुरी” साबित होगी। आप अकारण “फुटबॉल” बन कर अफ़सरों और राजनेताओं के निशाने पर आ जाएंगे।
आपके ख़िलाफ़ तीसरा मोर्चा उन अवहिभावकों का होगा जो किसी न किसी सियासी आका को काका बनाए बैठे हैं। लिहाजा थोथे “आदर्शवाद” की “ऊबड़-खाबड़ पगडंडी” से बचें और समय की माँग के अनुसार “उदारवाद” व “अवसरवाद” का “बायपास रोड” काम में लें। जो आपको डायरेक्ट “राजपथ” से जोड़े रख सके। याद रहे किसी को एक अंक ज़्यादा देने से “सुनामी” नहीं आएगी, लेकिन आधा अंक कम देने से “महामारी” की “नई लहर” ज़रूर आ जाएगी। जो केवल और केवल आपके लिए “कहर” साबित होगी।
वैसे ही “हैप्पी वाले बड्डे” पर “लॉलीपॉप” और बज़ट में बड़े पैमाने पर झुनझुना वितरण के चक्कर में “चार्वाकी” खर्चे से खोपड़ी भन्नाई हुई है तंत्र की। उस पर पुरानी पेंशन को लेकर जायज़ बवाल से उपजी नाजायज़ टेंशन अलग से भेजा भड़का रही है। मंहगाई, भ्रष्टाचार और बेरोज़गारी की ओलावृष्टि की आशंकाएं गंजी खोपड़ी के लिए जी का जंजाल बन रही है। अस्थाई चाकर स्थाई होने का कोहराम मचा कर राम याद दिला रहे हैं। अब आप ही सोचिए कि “आ बैल! मुझे मार” वाली सोच ठीक है या फिर ईमानदारी की सनक के ख़िलाफ़ थोड़ा सा लोच? अब सलाह मानें या न मानें, आपकी मर्ज़ी। अपना काम तो राय-बहादुर, राय-चंद, राय साहब बने रहना है। भले ही कल सीबीआई दबोचे या सीडी।
अपनी भी छोटी सी समझ में यह बड़ी बात घुस चुकी है कि अब काम से नाम बनने वाला नहीं। नाम अब बदनाम होकर ही बनता है। तो क्यों न मौके, मौसम और दस्तूर का फायदा उठाएं और यह कह कर पिंड छुडाएं कि-
“बुरा न मानो होली है।
पोल ज़रा सी खोली है।।
जय जय मद्य-प्रदेश।।

★सम्पादक★
न्यूज़ & व्यूज़
श्योपुर (मध्यप्रदेश)

2 Likes · 187 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.

You may also like these posts

ये मुलाकात सलामत रहेगी जहन में,
ये मुलाकात सलामत रहेगी जहन में,
श्याम सांवरा
✍️ नशे में फंसी है ये दुनियां ✍️
✍️ नशे में फंसी है ये दुनियां ✍️
राधेश्याम "रागी"
बाण मां के दोहे
बाण मां के दोहे
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया
जो कभी रहते थे दिल के ख्याबानो में
जो कभी रहते थे दिल के ख्याबानो में
shabina. Naaz
शहीदों को नमन
शहीदों को नमन
Dinesh Kumar Gangwar
सब कुछ देख लिया इस जिंदगी में....
सब कुछ देख लिया इस जिंदगी में....
ruchi sharma
पीहर आने के बाद
पीहर आने के बाद
Seema gupta,Alwar
इजहारे मोहब्बत
इजहारे मोहब्बत
ललकार भारद्वाज
*टूटे दिल को दवा दीजिए*
*टूटे दिल को दवा दीजिए*
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
वर्तमान
वर्तमान
Neha
तुझसे नहीं तेरी यादों से याराना है, चेहरे से ज्यादा तेरी बातों को पहचाना है।
तुझसे नहीं तेरी यादों से याराना है, चेहरे से ज्यादा तेरी बातों को पहचाना है।
Vivek saswat Shukla
"लड़ाई"
Dr. Kishan tandon kranti
*दुश्मन हिंदुस्तान के, घोर अराजक लोग (कुंडलिया)*
*दुश्मन हिंदुस्तान के, घोर अराजक लोग (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
everyone run , live and associate life with perception that
everyone run , live and associate life with perception that
पूर्वार्थ
“दर्द से दिल्लगी”
“दर्द से दिल्लगी”
धर्मेंद्र अरोड़ा मुसाफ़िर
वो प्यासा इक पनघट देखा..!!
वो प्यासा इक पनघट देखा..!!
पंकज परिंदा
करके इशारे
करके इशारे
हिमांशु Kulshrestha
शीतलहर (नील पदम् के दोहे)
शीतलहर (नील पदम् के दोहे)
दीपक नील पदम् { Deepak Kumar Srivastava "Neel Padam" }
शिक्षक
शिक्षक
Nitesh Shah
रहो कृष्ण की ओट
रहो कृष्ण की ओट
Satish Srijan
पड़ोसी कह रहा था कि अगर उसका नाम
पड़ोसी कह रहा था कि अगर उसका नाम "मुथैया मुरलीधरन" होता, तो व
*प्रणय प्रभात*
नैन
नैन
TARAN VERMA
कहानी
कहानी
Rajender Kumar Miraaj
यदि जीवन में आप अपने आपको खुश रखना चाहते है तो किसी के भी ऊप
यदि जीवन में आप अपने आपको खुश रखना चाहते है तो किसी के भी ऊप
Rj Anand Prajapati
कफ़न
कफ़न
Shweta Soni
एक शिक्षक होना कहाँ आसान है....
एक शिक्षक होना कहाँ आसान है....
sushil sharma
वेदनाओं का हृदय में नित्य आना हो रहा है, और मैं बस बाध्य होकर कर रहा हूँ आगवानी।
वेदनाओं का हृदय में नित्य आना हो रहा है, और मैं बस बाध्य होकर कर रहा हूँ आगवानी।
संजीव शुक्ल 'सचिन'
करना कर्म न त्यागें
करना कर्म न त्यागें
महेश चन्द्र त्रिपाठी
79king - là nhà cái trực tuyến uy tín hàng đầu Việt Nam
79king - là nhà cái trực tuyến uy tín hàng đầu Việt Nam
79kinglimited
लइका ल लगव नही जवान तै खाले मलाई
लइका ल लगव नही जवान तै खाले मलाई
Ranjeet kumar patre
Loading...