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21 Feb 2024 · 1 min read

अगर हो तुम

अगर हो तुम मुझमें कहीं ,
हो तुम मुझमें बैठे वहीं,
जहाँ मेरी अर्जीयाँ जाती हैं
तुमसे मिलने,
तड़पती हैं तुम्हारे आँगन में,
गुँजती हैं तुम्हारे घर,
आकर मेरी देह में
मेरी देह का हाल
सुनाती हैं बदहाली की तरह
जो कभी शोर करती हैं,
कभी खामोश रहती हैं,
तो कभी थक चूर-चूर हो जाती हैं ।

कभी यहीं कल्पना मेरी,
सोचती हैं तुम्हें,
खोजती हैं तुम्हें,
जहाँ और कुछ तो नहीं
तुम हो, तुम्हारी आवाज़ है
संगीत की तरह,
गूंजता कोई साज है,
जो कभी सुनने को बाध्य करती
कभी खर-खर सी आवाज़ में
कहीं गुम हो जाती,
ठीक हुबहु, अर्जीयाँ मेरी
कहते-कहते
मूक बाधिर हो जाती ।
अगर हो तुम मुझमें वहीं ।

जहाँ अनुभूति हैं डर की सहमी हुई ।
जहाँ हिम्मत थर-थर काँपती हुई ।
तो ये बात झूठी नहीं
कि जितनी तकलीफ मुझे है,
उतनी तकलीफ तुम्हें भी ।
जितना विश्वास मुझमें है,
उतना भरोसा तुम्हें भी ।
यह मुमकिन है,
अगर हो तुम मुझमें कहीं ।
अगर हो तुम मुझमें बैठे वहीं ।

Language: Hindi
1 Like · 156 Views

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