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20 Feb 2024 · 1 min read

ग़ज़ल

कभी तो दीजिए मौका हमें भी यार ख़िदमत का
सिला देंगे हुई दिल से रुहानी पाक चाहत का/1

रखूँ इक बात मैं जो याद दूजी भूल जाता हूँ
कहूँ बे-फ़िक्र ख़ुद को या कहूँ ज़ादू मुहब्बत का/2

कभी सोचा नहीं तुमने ख़ुदा ईनाम देता वो
ज़मीं से अर्श दिखलाए हुई सच्ची इबादत का/3

दिए हैं ज़ख्म जिसने भी भुलाकर प्यार तेरा सुन
सज़ा उसको ख़ुदा देगा अदा कर हक़ नफ़ासत का/4

करे जो सब्र करके काम उसकी ज़िंदगी सुंदर
फिकर कर कब हुआ हासिल किसी को फल इनायत का/5

कशिश ये आपकी देती मुझे पैग़ाम उल्फ़त के
करूँ मैं फ़ैसला कैसे खिलाफ़त कर बग़ावत का/6

कमाया ख़ूब तुमने है पचाओगे तभी जानें
सुना है बाँध भी दावा नहीं करते सलामत का/7

आर. एस. ‘प्रीतम’

Language: Hindi
1 Like · 85 Views
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