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14 Feb 2024 · 1 min read

*हो न लोकतंत्र की हार*

उठो, चलो, बढ़ते रहो, कभी न हो गति मंद|
नहीं असंभव काज फिर, कहें विवेकानंद||
उसी दिशा में ले चलें, नव गति, नव आरंभ|
देश-प्रेम की भावना, नहीं बूँद भर दंभ||

लार टपकती पाक की,नहिं देंगे कश्मीर|
बंधे कहाँ हैं हाथ अब, चमक रही शमशीर||
छेड़ा अब की बार तो, सेना पर नहिं रोक|
देंगे उसे जवाब फिर, घर में घुस कर ठोक||

घर-घर रौशन कर दिया, घर-घर दे दी गैस|
लाठी वाला ढूँढता , कहाँ गयी अब भैंस||
स्वाभिमान रोपित किया, दिया ‘आम’ आवास|
बीमा, खाता क्या नहीं, अब है उनके पास||

शोषित, वंचित को मिले, आरक्षण का साथ|
धर्म-जाति का वोट अब, नहीं किसी के ‘हाथ’||
मुश्किल अब कुछ भी नहीं, है मुमकिन हर बात|
चौकस चौकीदार तो, डर भागेगी रात||

जल-थल-अम्बर हर जगह, है क़दमों की छाप|
राम-राज का स्वप्न सच, होगा अपने आप||
लोकतंत्र में वोट पर, है अपना अधिकार|
साड़ी, कम्बल, नोट ले, नहिं बिकना इस बार||

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