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10 Feb 2024 · 1 min read

” आज़ का आदमी “

मनचाहा मिल जाए
दुकान ढूंढता है
कहां मन्दिरों में कोई
भगवान ढूंढता है

ज़मीर बेच- बेच कर
पहचान ढूंढता है
सफ में चोरों के रहकर
ईमान ढूंढता है

ओंछी सी हरक़त में
शान ढूंढता है
उड़ते हुए बादल में
आसमान ढूंढता है

“चुन्नू” अंधेरी गलियों में
चांन ढूंढता है
पैसों के आगे बेबस
इंसान ढूंढता है —-

•••• कलमकार ••••
चुन्नू लाल गुप्ता – मऊ (उ.प्र.)

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