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6 Feb 2024 · 1 min read

बेचारी माँ

नौ माहों तक लिए उदर में, वह दिन-रात हुलसती थी।
बड़े चाव से पुत्रजन्म की, बाट जोहती रहती थी।
पड़े उदर में इधर-उधर करते, जब लात चलाते थे।
फूले हुए पेट का घेरा, थोड़ा और बढ़ाते थे।

थोड़ा चलकर, करवट ले, माँ, उसको भी सह लेती थी।
पीड़ा में वह हँस लेती थी, मंद-मंद मुस्काती थी।
रोते थे, गीला करते थे, रातों-रात जगाते थे।
छोटी-छोटी बातों पर ज़िद, करके शोर मचाते थे।

माँ समझाती थी बहलाकर, ऊँच-नीच समझाती थी।
जायज़ क्या नाजायज़ माँगों, को भी पूरा करती थी।
बड़े हुए हम माॅं की शिक्षा और सुरक्षा के कारण
आज मान सम्मान मिला जो, वह सब है माॅं के कारण

समय बीत जाता है झटपट, बच्चे युवा हो गये सब,
माॅं अब वृद्ध हुई, शक्तियाॅं क्षीण हो गईं उसकी अब,
बूढ़े होने पर माॅं को बच्चों का एक सहारा है,
बच्चों को भी माॅं का सुख, सम्मान बहुत अब रखना है

उॅंगली पकड़ कभी माॅं ने, हमको चलना सिखलाया था,
अब बच्चों को उस ममता का, असली मूल्य चुकाना है।

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