Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
5 Feb 2024 · 2 min read

बिछोह

विचलित, हतप्रभ, वो कभी
इधर जाती कभी उधर
ना उसे ध्यान था वस्त्रों का
न आसपास के लोगों पर नज़र
बदहवास उसके पास पहुँच जाती
उसे बोलने को आँखें खोलने को
उकसाती,
हिलती थी उसे जोर से
शिकायत करती थी, रौब से
बैठ कर पास उसका सफ़ेद सिर सहलाती
बे-पनाह मोहब्बत से एकटक देखती,
हँसती कभी, कभी आँखें डबडबातीं
कभी झुककर उन्मत्त सी
बस चूमती रहती…
रोकने पर मनाती नहीं
किसी की बात सुनती नहीं …. ml
व्याकुल हो कभी इसे
कभी उसे खींच,
शिकायत करती थी कि
रूठा है वो, बोलता नहीं
कोई समझाओ उसे
चुप क्यों है, आँखें खोलता क्यों नहीं
सब उसे समझाते,
हाथ पकड़ पास बैठाते थे,
पर हाथ झटक, कहना ना सुन
फिर-फिर वह वहीं जाती थी
आँखों में शिकायत लिये
कभी तकिया ठीक करती
अभी पाँव सहलाती थी
अभी गुस्से से बोली…
हाथ पकड़ क्यों नहीं बैठाते ?
कब से चल-चल कर थक गयी हो तुम!
क्यों नहीं समझाते?
मुझे देखते भी नहीं?
ऐसे क्यों रूठे हो?
मैं तो वही हूँ जिसे तुम
हमेशा प्यार करते हो…
मनुहार कर, हार कर, खीझ कर
वापस आ जाती थी,
जो दिख जाता, उसी से
मदद माँगती थी,
एक दो नहीं, बहुत से प्रियजन बैठे थे
देखते उसे करुणा से
लेकिन सब मौन थे…
कैसे बतायें उसे,
वो कभी नहीं बोलेगा, न आँखे
ना ही मुँह खोलेगा,
उसकी बातें अब अनुत्तरित रहेंगीं
बाकी जो जिन्दगी है अकेले जीनी पड़ेगी
क्योंकि वह मुक्त हो गया है
उसे छोड़ वहाँ गया है
जहाँ सुख-शान्ति और अनन्त प्यार है
परमधाम का वास है
मोक्ष की प्राप्ति है।

1 Like · 204 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.

You may also like these posts

लेखक होने का आदर्श यही होगा कि
लेखक होने का आदर्श यही होगा कि
सोनम पुनीत दुबे "सौम्या"
পছন্দের ঘাটশিলা স্টেশন
পছন্দের ঘাটশিলা স্টেশন
Arghyadeep Chakraborty
अपनी ज़िक्र पर
अपनी ज़िक्र पर
Dilip Bhushan kurre
गलती हो गई,
गलती हो गई,
लक्ष्मी सिंह
जीत सकते थे
जीत सकते थे
Dr fauzia Naseem shad
गंगा (बाल कविता)
गंगा (बाल कविता)
Ravi Prakash
माँ की ममता,प्यार पिता का, बेटी बाबुल छोड़ चली।
माँ की ममता,प्यार पिता का, बेटी बाबुल छोड़ चली।
Anil Mishra Prahari
👌2029 के लिए👌
👌2029 के लिए👌
*प्रणय प्रभात*
जीने का एक अच्छा सा जज़्बा मिला मुझे
जीने का एक अच्छा सा जज़्बा मिला मुझे
अंसार एटवी
मै पत्नी के प्रेम में रहता हूं
मै पत्नी के प्रेम में रहता हूं
भरत कुमार सोलंकी
मिटता नहीं है अंतर मरने के बाद भी,
मिटता नहीं है अंतर मरने के बाद भी,
Sanjay ' शून्य'
*माॅं की चाहत*
*माॅं की चाहत*
Harminder Kaur
The ability to think will make you frustrated with the world
The ability to think will make you frustrated with the world
पूर्वार्थ
"चुनाव"
Dr. Kishan tandon kranti
जन्मदिन विशेष : अशोक जयंती
जन्मदिन विशेष : अशोक जयंती
ब्रजनंदन कुमार 'विमल'
मुराद अपनी कोई अगर नहीं हो पूरी
मुराद अपनी कोई अगर नहीं हो पूरी
gurudeenverma198
बहुत कुछ पाना, बहुत कुछ खोना।
बहुत कुछ पाना, बहुत कुछ खोना।
भगवती पारीक 'मनु'
शिक़ायत नहीं है
शिक़ायत नहीं है
Monika Arora
अपराह्न का अंशुमान
अपराह्न का अंशुमान
Satish Srijan
दोहा - कहें सुधीर कविराय
दोहा - कहें सुधीर कविराय
Sudhir srivastava
धर्म निरपेक्ष रफी
धर्म निरपेक्ष रफी
ओनिका सेतिया 'अनु '
विचार
विचार
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
लिखी हैँ किताबें कई, ज़िन्दगी ने मेरी
लिखी हैँ किताबें कई, ज़िन्दगी ने मेरी
Kamla Prakash
राजनीति
राजनीति
Bodhisatva kastooriya
दोहा पंचक. . . . . गर्मी
दोहा पंचक. . . . . गर्मी
sushil sarna
मोहब्बत
मोहब्बत
Dinesh Kumar Gangwar
****जिओंदा रहे गुरदीप साड़ा ताया *****
****जिओंदा रहे गुरदीप साड़ा ताया *****
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
Yes some traumas are real.... time flies...everything change
Yes some traumas are real.... time flies...everything change
पूर्वार्थ देव
काबिल नही तेरे
काबिल नही तेरे
ललकार भारद्वाज
कूच-ए-इश्क़ से निकाला गया वो परवाना,
कूच-ए-इश्क़ से निकाला गया वो परवाना,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
Loading...