Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
19 Jan 2024 · 1 min read

महाराणा प्रताप

अणनमिया प्रताप

ऊंचो थारो मान है,घणीं जबरकी स्यान।
थारी कीरत ही बसै,हिवड़ै राजस्थान।।

इक्यासी रो भालवो, कवच बहत्तर भार।
पचपन स्यूं बेसी हुई, ढाल और तलवार।।

चेतक रै असवार री,बातां अचरज कार।
मात भोम रा लाडला, अगणित जय-जयकार।।

अणनमिया प्रताप जी,दुसमण रा सैकाळ।
देस धरम रै कारणै,बन बसिया पत पाळ।।

पत राखणियां देस री, चेतक रा असवार।
धिन-धिन थांरी बीरता,धिन थांरी तलवार।।

बन रा बासी हो गिया, एकलिंग दीवाण।
मात भोम रा लाडला, करै मौज सुबखाण।।

न नमिया न हारिया, न बिसरायो कौल।
सुणौ सपूती रा जण्या,धन कीका अणमोल।।

नादै गिगन धरा दिसा,सुण कीरत परताप।
हुयो न कोई होयस्यी,ईस्या अनौखा आप।।

अकबर न ओछौ कियो,ठाडौ बळ परताप।
धूळ चटाई सौ दफा,बीर अनौखा आप।।

हळदीघाटी गा रही,सूरां थांरा गीत।
घणीं निभाई पातळा,तलवारां री रीत।।

धन्य भोम मेवाड़ री,निपजावै किरपाण।
सूरवीर परताप रो, कण-कण करै बखाण।।

मायड़ धरती आपणीं,हुलरावै परताप।
गूंजै पातळ लौरियां,फेरूं आऔ आप।।

न भोग्यौ सुख राज रो,न पौढ्या सुख सेज।
सबद सांपड़ैं गावता,कीका कीरत तेज।।

धिन हो धणीं तलवार रा,अॆकर पाछा आव।
मुळकै मुरधर मावड़ी,आंचळ बरसै स्याव।।

विमला महरिया “मौज”

Loading...