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27 Dec 2023 · 1 min read

*मेरा चाँद*

कमरे की खिड़की मेरी
पूछती है अक्सर
क्यूँ मैं चाँद को आने देती हूँ
दबे पाँव भीतर
रात-बे-रात-रात कमरे में अपने
और जवाब कहता नहीं
कि खिड़की मेरे कमरे की
इश्क़ में है मेरे
और मैं चाँद के इश्क़ में
बस इतनी सी बात जरूर है
लेकिन कह दी जाए
तो अनकही ही भली है ऐसे
अपने-अपने इश्क़ हैं
और अपने-अपने भरम भी
बात ये है कि
ख़ुश है हर एक अपने भरम में
और इश्क़ में एक भरम भी
न हो तो जैसे जीने की
वजह नहीं फ़िर भी
ये भरम बना रहे तो अच्छा है।

वंदना ठाकुर “चहक”

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