Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
13 Sep 2016 · 1 min read

मैं सालिब हूँ तू आशूतोष क्यों है

चलो माना मुहब्बत भी नहीं है
नज़र लर्ज़ां ज़बां खामोश क्यों है

न आयेगा कोई मिलने मगर अब
मगर ये दिल हमा तनगोश क्यों है

कभी आवाज़ होती थी खुदा की
ज़बाने हल्क़ अब ख़ामोश क्यो है

मैं सच्चा था मुकदमा हार जाता
वो झूठा था मगर रोपोश क्यों है

अगर मज़हब मुहब्बत है हमारा
मैं सालिब हूँ तू आशूतोष क्यों है

Loading...