लाल रंग मेरे खून का,तेरे वंश में बहता है
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लाल रंग मेरे खून का,तेरे वंश में बहता है
पर न जाने क्यूं कोई मुझे अपना नहीं कहता है।
हर जस्बात लबों से बंया करके समझाती हूं
फिर भी बहुत कुछ समया मेरे अंदर ही रहता है।
नहीं चाहती हूं कोई हमदर्दी से मुझे देखे
मुस्कुराकर मेरा दिल इस कारण सब सहता है।
ज़मीं वहीं है, आसमां भी अविचल रहेगा,
तेरे गुनाहों का फल भी इसी जहां में मिलता है ।
हर टुकड़ा मेरी रूह का लहू लुहान पड़ा है
और हर आह उस टुकड़े का तुझे बदहाल किया करता है।