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5 Nov 2023 · 2 min read

अहोई अष्टमी का व्रत

अहोई अष्टमी

हिंदू धर्म में वैसे तो हर व्रत का अपना-अपना विशेष महत्व है। लेकिन कुछ व्रत केवल महिलाओं अर्थात सुहागिन स्त्रियों के लिए बहुत महत्व रखते हैं। जैसे कि आज 5 नवंबर दिन रविवार को अहोई अष्टमी का व्रत है ।हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक पक्ष की अष्टमी को अहोई अष्टमी का व्रत रखा जाता है अहोई अष्टमी का व्रत करवा चौथ से चार दिन बाद और दिवाली से ठीक-आठ दिन पहले आता है। अहोई अष्टमी पूजन का शुभ मुहूर्त शाम 5:32 से शाम 6:51 तक रहेगा पूजन की अवधि 1 घंटा 18 मिनट की है।
अहोई अष्टमी का अर्थ एक प्रकार से यह भी होता है
अनहोनी को होनी बनाना।जैसे साहूकार की छोटी बहू ने कर दिखाया था। स्याहू छोटी बहू की सेवा से प्रसन्न होकर उसे साथ पुत्र और साथ बहुएँ होने का आशीर्वाद देती है। स्याहू के आशीर्वाद से छोटी बहू का घर पुत्र और पुत्र की वधुओ से हरा भरा हो जाता है। अहोई अष्टमी का व्रत और पूजा माता अहोई या देवी अहोई को समर्पित है। अहोई माता जो की देवी पार्वती का अवतार मानी जाती है उनकी पूजा की जाती है। अहोई अष्टमी का व्रत अहोई अष्टमी के दिन माँ अपनी संतान के लिए इस पवित्र व्रत को रखती है और अपनी संतान की लंबी आयु की कामना करती है। माताएं अपने पुत्र एवं पुत्री की दीर्घायु व प्रतिष्ठा की रक्षा के लिए अहोई अष्टमी व्रत रखती हैं। इस व्रत को रखने से संतान के कष्टो का निवारण होता है एवं जीवन में सुख समृद्धि व तरक्की आती है।
अहोई अष्टमी की पूजा विधि में यह व्रत दिनभर निर्जल रहकर किया जाता है। अहोई माता का पूजन करने के लिए माताएं अहोई माता की तस्वीर लगाती या बनाती है। इसके बाद कलश में जल भरकर रखा जाता है चांदी की बनी हुई स्याह की मूर्ति और दो गुड़िया रखकर उसे मौली से गुथ ले। तत्पश्चात रोली, अक्षत से उसकी पूजा करें पूजा करने के बाद दूध, भात, हलवा आदि का उन्हें नैवेद्य अर्पण करें। चंद्रमा को जल अर्पण करें फिर हाथ में गेहूं के साथ दाने लेकर कथा सुने उसके बाद मूली में पिरोई अहोई माता को गले में धारण करें अर्पित किए गए नैवेद्य को अपनी सास या ब्राह्मण को ही दे। दीपावली के शुभ दिन अहोई को उतार कर उसका गुड से भोग लगाए जितने बेटे हो उनके नाम के दो-दो दाने अहोई में डालते रहना चाहिए ऐसा करने से माता खुश होती है। बच्चों को दीर्घायु देती है और घर में मंगल कार्य करती रहती है। माता को पूरी और मिठाई का भोग लगाया जाता है इसके बाद तारे को अयोध्या देकर संतान की लंबी आयु और सुखद जीवन की कामना करने के बाद इस दिन सास या माँ के चरणों को तीर्थ मानकर उनसे आशीर्वाद लिया जाता है।

हरमिंदर कौर ,अमरोहा

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