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21 Oct 2023 · 1 min read

■ तेवरी-

#देसी_ग़ज़ल-
■ खोपड़ी अपनी पराए बाल हैं।।
【प्रणय प्रभात】

● उसने जो पूछा कि कैसे हाल हैं।
हमने खुल कर कह दिया बेहाल हैं।।

● इस नदी में नीर अब बाक़ी नहीं।
इसमें केवल रेत है घड़ियाल हैं।।

● लोग सब चाणक्य जिनको कह रहे।
दरअसल वो सब गुरूघण्टाल हैं।।

● न्याय की तलवार है अब भोथरी।
पैंतरे अपराधियों की ढाल हैं।।

● दर्द के सब लोग आदी हो चुके।
अब दिलासे जान के जंजाल हैं।।

● आज गहरी सोच में हैं सुर सभी।
लस्त लय तो बेसुधी में ताल हैं।।

● कल के कलुआ को सियासत फल गई।
कोयले से गाल थे अब लाल हैं।।

● भेड़ की खालों में सारे भेड़िए।
वो जो असली दिख रहे नक़्क़ाल हैं।।

● भोज कंगाली पे अपनीं रो रहे।
कल के गंगू आज मालामाल हैं।।

● मुर्गियों के दाम पीछे रह गए।
दोगुनी मंहगी हुई अब दाल हैं।।

● बांध पगड़ी घूमते ईमान की।
कल सरीखे आज तक बदहाल हैं।।

● जेब में कंघे लिए गंजे दिखे।
खोपड़ी अपनी पराए बाल हैं।।

● वो किसी को भी मदद देंगे नहीं।
बंदिशों में इन दिनों के कंगाल हैं।।

■प्रणय प्रभात■
●संपादक/न्यूज़&व्यूज़●
श्योपुर (मध्यप्रदेश)

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