यदि मेरी चाहत पे हकीकत का, इतना ही असर होता
पारिवारिक संबंध, विश्वास का मोहताज नहीं होता, क्योंकि वो प्र
તમે કોઈના માટે ગમે તેટલું સારું કર્યું હશે,
गंगा सेवा के दस दिवस (प्रथम दिवस)
सुहाना मंज़र
धर्मेंद्र अरोड़ा मुसाफ़िर
कितनी शिद्दत से देखा होगा मेरी नज़रों ने
राम के जैसा पावन हो, वो नाम एक भी नहीं सुना।
अक्सर कोई तारा जमी पर टूटकर
वो हर रोज़ आया करती है मंदिर में इबादत करने,
लवली दर्शन(एक हास्य रचना ) ....
*जाता देखा शीत तो, फागुन हुआ निहाल (कुंडलिया)*
वो ख्वाबों में आकर गमज़दा कर रहे हैं।