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29 Sep 2023 · 1 min read

आत्मा

चलत -चलते मै कुछ पदचाप छोडता जा रहा हू!
शायद अंनत से कोई बुलावा है औ मै आ रहा हू!!
आत्मा को निरंतर चलते रहना है शरीर बदल कर!
यू लगता है निर्बाध गति से चलता ही जा रहा हू !!
क्या इस यात्रा का कोई अंत भविष्य मे संभव है?
क्यू मौन परमात्मा,मै तेरा अंश, क्यू दंश पा रहा हू?
मानव मानव को भी मिटाने की सामर्थ रखने लगा,
क्या सोचा कभी आत्मा क्यू नही मिटा पा रहा हू?
मै बाध्य हू तुम्हारे असतित्व के अभिशाप से सदा,
कर्म के प्रतिफल को जन्म जन्मातंरो तक पा रहा हू!!

सर्वाधिकार सुरछित मौलिक रचना
बोधिसत्व कस्तूरिया एडवोकेट ,कवि,पत्रकार
202 नीरव निकुजं फेस-2 सिकंदरा,आगरा -282007

Language: Hindi
283 Views
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