खुशी देने से मिलती है खुशी और ग़म देने से ग़म,
बुझी नहीं है आज तक, आजादी की आग ।
अपने मोहब्बत के शरबत में उसने पिलाया मिलाकर जहर।
हो न हो हम में कहीं अमरत्व तो है।
मुझे दर्द भी पीना आ गया ।
ग़ज़ल _ दिल मचलता रहा है धड़कन से !
"भोर की आस" हिन्दी ग़ज़ल
Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
तल्ख़ इसकी बहुत हक़ीक़त है
“अंग्रेज़ बहुत चालाक हैं। भरी बरसात में स्वतंत्र करके चले गए
वक्त एवम् किस्मत पर कभी भी अभिमान नहीं करना चाहिए, क्योंकि द
किसी ने क्या खूब कहा है किताब से सीखो तो नींद आती है,
कौन कहता है कफ़न का रंग सफ़ेद ही होता है