किसी बिस्तर पर ठहरती रातें
स्वाधीनता के घाम से।
Pt. Brajesh Kumar Nayak / पं बृजेश कुमार नायक
राह कोई नयी-सी बनाते चलो।
मौसम ए बहार क्या आया ,सभी गुल सामने आने लगे हैं,
काव्य की आत्मा और सात्विक बुद्धि +रमेशराज
बुंदेली दोहा-पखा (दाढ़ी के लंबे बाल)
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
रोता है दिल, तड़पती है धड़कन
दूध वाले हड़ताल करते हैं।
ज़िंदगी तो फ़क़त एक नशा-ए-जमज़म है
ईद
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
मैंने जिसे लिखा था बड़ा देखभाल के
अभिमान
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर