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16 Jul 2023 · 1 min read

*सुबह उगा है जो सूरज, वह ढल जाता है शाम (गीत)*

सुबह उगा है जो सूरज, वह ढल जाता है शाम (गीत)
★★★★★★★★★★★★★★
सुबह उगा है जो सूरज ,वह ढल जाता है शाम
( 1 )
घटना – बढ़ना जीवन का क्रम, नित चलता रहता है
कभी खुशी है कभी हृदय में, गम पलता रहता है
साँसें चलती रहतीं इनको, कब मिलता आराम
( 2 )
अपने और पराए जग में, किसको कहो बुलाएँ
जिनसे नाता बने नेह का, वह अपने हो जाएँ
सफर चार दिन का है फिर, लगता है पूर्णविराम
( 3 )
जीवन की आपाधापी में, कुछ पल आओ हँस लें
पता नहीं कब कालसर्प, आकर फिर हमको डँस लें
किसे याद रहता मुख है, रहता है किसका नाम
सुबह उगा है जो सूरज , वह ढल जाता है शाम
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश )
मोबाइल 9997615451

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