Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
5 Jul 2023 · 5 min read

#स्मृति_शेष (संस्मरण)

#स्मृति_शेष (संस्मरण)
■ त्रयोदशी की दूसरी बरसी पर
धर्मपिता स्व. श्री महिपाल कृष्ण जी भटनागर को समर्पित
(तीन दशक की यादों में)
【प्रणय प्रभात】
आज आपकी अंतिम विदा के उपरांत त्रयोदशी की तिथि के दो बरस बीत गए। स्मृति में है दो साल पूर्व के वो 13 दिन। एक-एक दिन, एक-एक रात सभी पर बेहद भारी। धीरे-धीरे सब सहज हो जाना तय था, जो हुआ भी। यही इस दुनिया का दस्तूर है। बावजूद इसके आपके कृतित्व और व्यक्तित्व के वो पक्ष सदैव धवल रहेंगे, जिनके पीछे तीन दशक का साथ रहा।
आपके रूप में पिता को दूसरी बार खोया, यह लिखने नहीं आभास करने का विषय है। वर्ष 1990 का साल और बसंत पंचमी का दिन, जब आप पहली बार आष्टा (ज़िला सीहोर) से श्योपुर आए थे। प्रयोजन अपनी बड़ी बेटी के लिए मुझे देखने। रात भर के सफ़र के बाद दिन भर का प्रवास। सामान्य और सहज चर्चा के बाद बिना किसी पशोपेश के कच्चा शगुन। कुछ धार्मिक व सुरम्य स्थलों की सैर और वापसी। एक साल बाद 07 फरवरी को कन्यादान करते हुए आप न केवल धर्मपिता वरन पिता बने।
तीन दशक के इस सह-सम्बन्ध के बीच बहुत सारी खट्टी-मीठी यादें जुड़ती रहीं, जिन्हें साझा करना आज न प्रासंगिक है और न संभव। आज का दिन बस आप के उस जीवन को समर्पित है जो आप की जीवन यात्रा को शिष्ट विशिष्ट बनाता है। जीवन के कई आयाम और सोपान जो आपको औरों से अलग बनाते हैं।
सात भाई-बहिनों के परिवार के सदस्य के तौर पर भाइयों में चौथे क्रम पर, लेकिन भूमिका ज़िम्मेदार मुखिया की। छोटे भाई के रूप में सबसे बड़े और अविवाहित भाई के लिए पुत्रवत। बाल-बुद्धि अग्रज की बच्चों की तरह बिना किसी झुंझलाहट अंतिम समय तरह परवरिश और सेवा।
परिवार व समाज सहित सार्वजनिक जीवन के एक-एक सम्बन्ध का उत्साह के साथ निर्वाह। एक आदर्श शिक्षक के रूप में हज़ारों बच्चों ही नहीं उनके अभिभावकों तंक के प्रति आत्मीय सोच व कार्य जो आपकी स्थानीय नहीं आंचलिक लोकप्रियता का माध्यम बने। कार्य के प्रति निष्ठा व सरोकारों के प्रति समर्पण में अग्रणी रहे आप।
युगऋषि पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य के अनुयायी और वेदमाता गायत्री व बाबा महाकाल के अनन्य उपासक। जीवन की व्यस्तता के बीच धर्म-कर्म व अनुष्ठान में कोई कोर-कसर नहीं। लम्बी पूजा पद्धति के बीच विभागीय, पारिवारिक व सामाजिक दायित्वों में सहर्ष भागीदारी। पता नहीं कहाँ से लाते थे इतनी शक्ति व समय। तीन बेटियों व एक बेटे की शिक्षा-दीक्षा से लेकर विवाह तक की सारी भूमिकाओं का सुनियोजित निर्वाह आपकी असीम क्षमता का प्रमाण है। सर्वगुण संपन्नता में आपका शायद ही कोई सानी रहा हो। कुछ न कुछ करते रहने की धुन ने शायद ही आपको कभी चैन से बैठने दिया हो। काम चाहा हो या अनचाहा, पूरी युक्ति के साथ करने की धुन आप में हमेशा देखी।
उपयोगी के साथ-साथ अनुपयोगी चीजों को छांट-बीन कर तरतीब से रखने के अजीबो-ग़रीब शौक़ ने हमेशा हैरत में डाला। कालांतर में समझ आया कि यह देशकाल और वातावरण से प्रेरित एक अलग गुण था। ग्रामीण संस्कृति के पारंपरिक अभावों की समझ ने आप में तमाम अनूठे गुण विकसित किए। इनमें एक था गाँव-देहात से जुड़े कामों का सलीका। बालियों से अनाज निकालना हो या दलहन से दालें। पूरे मनोयोग से करना आपको भाता रहा। हर तरह की सामग्री जुटाना और बाँटना भी आपको ख़ूब भाया। बिना खीझ या अरुचि के कोई न कोई उपक्रम करने का अवसर तलाशना आपकी कर्मशीलता का परिचायक रहा।
अच्छी-खांसी क़द-काठी समय व स्वास्थ्य के वशीभूत लगभग धनुषाकार हो गई लेकिन जीवन से जुड़े कार्यों के प्रति आपका जीवट ग़ज़ब का रहा। हर तरह के गृह कार्य व पाक कला में निपुणता के साथ अतिथि सत्कार की रुचि ने आपको रसोई से कभी दूर नहीं रहने दिया। आए दिन कुछ न कुछ बना कर परोसने के साथ आग्रहपूर्वक खिलाने में प्रमाद कभी आप पर हावी नहीं हो सका। कार्य के प्रति स्वाबलंबन इतना कि किसी पर आश्रित होने का कोई सवाल नहीं। स्वाध्याय इतना मानो एक चलता-फिरता पुस्तकालय। बच्चों से लेकर बड़ों तक के लिए अनगिनत कविताओं, कहानियों ने आपको महफ़िलो की शान बनाए रखा। बच्चों में बच्चे बनने से आपको परहेज़ करते मैंने कभी नहीं देखा। हर मौके पर कुछ न कुछ सुनने सुनाने की आपकी ललक ज़बरदस्त थी। वो भी उच्च स्वर में पूरी लयता व तन्मयता के साथ। जब कहो, जहां कहो, बिना किसी ना-नुकर के राज़ी। मानो प्रस्तुति की चुनौती के लिए हमेशा तैयार हों। औरों की प्रस्तुति व अभिव्यक्ति पर बिना मीन-मेख खुले मन से तारीफ़ करते हुए उत्साह बढ़ाने का हुनर ऊपर वाले ने आप में कूट-कूट कर भरा था।
संयुक्त परिवार के मुखिया से लेकर दादा-नाना की भूमिका में आप पारंगत रहे। बाक़ी रिश्तों को भी आपने बख़ूबी निभाया। आपके सान्निध्य में न बच्चे ऊबते थे न बड़े। रोचक सामग्री का भण्डार जो रहे आप। इस तरह की सर्वकालिक सार्वभौमिकता हर किसी को मयस्सर नहीं होती। संगीत, साहित्य, संस्कृति सहित धर्म व आध्यात्म के प्रति आपकी गहन अभिरुचि को भुला पाना भी शायद ही किसी परिजन या परिचित के बस में हो। “क्षणे तुष्टा, क्षणे रुष्टा” वाली आपकी प्रवृत्ति को यदि सकारात्मक दृष्टिकोण से परखा जाए तो यह कहा जा सकता है कि आपने ख़ुद में छुपे एक बच्चे को भी जीवन के अंतिम क्षण तक शिद्दत से पाले-पोसे रखा। आप का क्रोध दूध के उफान सा हुआ करता था। वो भी कभी-कभी कुछ देर के लिए। गुरुत्तर मूल्यों के प्रति स्वाभाविक गाम्भीर्य आपकी प्रवृत्ति की निश्छल बालसुलभता की विरोधी न होकर सहचर रहा। यह गुण विरलों में ही पाया जाता है।
अपना बन कर अपना बना लेने की महारत ने आपको जीवन पर्यंत एक “अजातशत्रु” बनाए रखा। मानवोचित गुणधर्म आपके कृतित्व और व्यक्तित्व को अंतिम समय तक उभारते व निखारते रहे। कुल मिलाकर जो जीवन आपने जिया वह अनुकरणीय ही रहेगा। आपका स्नेह तीन दशक तक पाना सौभाग्य रहा। संघर्षपूर्ण जीवन को सरलता व सरसता से जीने का ढंग आपसे ही जाना। यह कहने में न कल कोई हिचक थी न आज है। एक तटस्थ लेखक के तीर पर यह सब लिखते हुए भी भी बहुत कुछ छोड़ने पर बाध्य हूँ। शायद शब्द सामर्थ्य और समय के याभाव की वजह से। सदैव सा क्षमाभिलाषी हूँ इसके लिए।
जीवन के अंतिम वर्ष में व्याधियों और जटिल उपचार के असहनीय कष्ट सम्भवतः प्रारब्ध थे तथापि इस दौरान मिली सेवा सुश्रुषा आपके संचित सुकृत्यों की देन थी। आज अनंत की ओर आपकी यात्रा के अंतिम दिन सम्पूर्ण आदर व आस्था से आपको प्रणाम। स्थूल अनुपलब्धता के बाद भी सूक्ष्म रूप में आपका आशीष व संरक्षण मिलता रहेगा। पता है मुझे ही नहीं भावपूरित नमन….।💐💐💐💐💐💐💐💐

1 Like · 324 Views

You may also like these posts

दिल की दहलीज़ पर जब कदम पड़े तेरे ।
दिल की दहलीज़ पर जब कदम पड़े तेरे ।
Phool gufran
मौलिक विचार
मौलिक विचार
डॉ.एल. सी. जैदिया 'जैदि'
"खाली हाथ"
इंजी. संजय श्रीवास्तव
ज़िंदगी से थोड़ी-बहुत आस तो है,
ज़िंदगी से थोड़ी-बहुत आस तो है,
Ajit Kumar "Karn"
सवैया
सवैया
Rambali Mishra
संजीवनी सी बातें
संजीवनी सी बातें
Girija Arora
मैंने खुद को जाना, सुना, समझा बहुत है
मैंने खुद को जाना, सुना, समझा बहुत है
सिद्धार्थ गोरखपुरी
केवल माँ कर सकती है
केवल माँ कर सकती है
Vivek Pandey
कब जुड़ता है टूट कर,
कब जुड़ता है टूट कर,
sushil sarna
मुख पर जिसके खिला रहता शाम-ओ-सहर बस्सुम,
मुख पर जिसके खिला रहता शाम-ओ-सहर बस्सुम,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
जीवन निर्झरणी
जीवन निर्झरणी
Jai Prakash Srivastav
"आतिशी" का "अनशन" हुआ कामयाब। घर तक पहुंचा भरपूर पानी।
*प्रणय*
कागज़ के फूल ( प्रेम दिवस पर विशेष )
कागज़ के फूल ( प्रेम दिवस पर विशेष )
ओनिका सेतिया 'अनु '
**विश्वास की लौ**
**विश्वास की लौ**
Dhananjay Kumar
रामजी का कृपा पात्र रावण
रामजी का कृपा पात्र रावण
Sudhir srivastava
कभी उसकी कदर करके देखो,
कभी उसकी कदर करके देखो,
पूर्वार्थ
"स्वार्थी रिश्ते"
Ekta chitrangini
*सब से महॅंगा इस समय, पुस्तक का छपवाना हुआ (मुक्तक)*
*सब से महॅंगा इस समय, पुस्तक का छपवाना हुआ (मुक्तक)*
Ravi Prakash
"आशिकी में"
Dr. Kishan tandon kranti
ग़ज़ल
ग़ज़ल
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
गीत ____ मां के लिए
गीत ____ मां के लिए
Neelofar Khan
छलावा बन गई दुल्हन की किसी की
छलावा बन गई दुल्हन की किसी की
दीपक झा रुद्रा
3971.💐 *पूर्णिका* 💐
3971.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
राह मुश्किल हो चाहे आसां हो
राह मुश्किल हो चाहे आसां हो
Shweta Soni
उसने आंखों में
उसने आंखों में
Dr fauzia Naseem shad
नन्ही भूख
नन्ही भूख
Ahtesham Ahmad
समर्थवान वीर हो
समर्थवान वीर हो
Saransh Singh 'Priyam'
*ग़ज़ल*
*ग़ज़ल*
आर.एस. 'प्रीतम'
खुद को भुलाकर, हर दर्द छुपाता मे रहा
खुद को भुलाकर, हर दर्द छुपाता मे रहा
Ranjeet kumar patre
।। गिरकर उठे ।।
।। गिरकर उठे ।।
विनोद कृष्ण सक्सेना, पटवारी
Loading...