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18 Jun 2023 · 1 min read

"रक्तबीज"

मैंने समझ लिया है
जान-पहचान लिया है
वो कम नहीं होता
बढ़ता ही जाता है
रक्तबीज की तरह।

न सिमटता, न दुबकता
न ही छुपता कभी।

सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में
फैला हुआ है जो
सात समन्दर पार तक,
कर्क, मकर औ’ भूमध्य
सभी रेखाओं से परे
अनन्त-असीम संसार तक।

अकल्पनीय ढंग से
जो बन जाता
रक्तबीज की तरह
हू-ब-हू, सेम-सेम,
जिसे कहती सारी दुनिया
प्रेम… प्रेम…. प्रेम…..।

डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
भारत के 100 महान व्यक्तित्व में शामिल
एक साधारण व्यक्ति

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