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14 Jun 2023 · 1 min read

6-जो सच का पैरोकार नहीं

जो सच का पैरोकार नहीं
वो काग़ज़ है अख़बार नहीं

भाग्य भरोसे जीना छोड़ो
मुफ़लिस हो तुम लाचार नहीं

कहलाता ग़द्दार हमेशा
भारत से जिसको प्यार नहीं

आँधी मुझको मत आँख दिखा
चट्टान हूँ खर पतवार नहीं

सत्ता की ख़ातिर नफ़रत की
खड़ी करो तुम दीवार नहीं

थाती का सौदागर यारो
हो सकता चौकीदार नहीं

स्वर्ण लकीरें खींच रही जो
कलम है कोई तलवार नहीं

रंग बदलने वाला मेरा
नेताओं सा किरदार नहीं

क़दमों में तेरे गिर जाये
ऐसी मेरी दस्तार नहीं

ग़ज़ल ‘विमल’ की आईना है
बस शे’रों की भरमार नहीं

-अजय कुमार ‘विमल’

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