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29 May 2023 · 1 min read

शीर्षक-"ओस"(11)

सुबह की ओस की बूंदें
यह उम्मीद दिला रही हैं,
जैसे मैं दिखती भर हूँ,
फर मुझे छू नहीं सकते,

ऐसे ही कुछ लोग करीब
रहकर भी करीब नहीं रहते,

लेकिन सूरज जैसे रोज एक नए
सवेरे के संग नवीन सपनों को
साथ लेकर आता है,
धूप भी बिना रूकावट बराबर नवीन
रंगीनियत से खिलती है,

ऐसे ही जीवन में हर बगिया में भी
ओस की बूंदों सह बहारें हरतरफ
बिखरेंगी,
चिड़ियों की चहक भी सुनाई देंगी,
और खिले हुए फूलों की खुशबू
हर आलम में सदा महकेंगी

सदाबहार पेड़ जो हैं,सिर्फ इसी प्रतिक्षा में
सदा डटकर खड़े रहते हैं

आरती अयाचित
स्वरचित एवं मौलिक
भोपाल

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