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16 Aug 2025 · 1 min read

सिन्धु रुकती कब

उचित अनुचित में
रुक जाना बेहतर है
अधिक पर अधिक
मधुर मधु हो कड़वी

छिल छाले फोड़े जब
धुल उड़ हो पथ सूनी
ज्वाला शीतलता का
स्पर्श स्पंदनआँसू बह

चाहकर भी ना रुकता
अति से परहेज सीखता
कल कल छल छल बेसुध
सिन्धु दूजे को जीवन देती

सुख नवल उमंगों की जब
अनजानी सुहाग मिटाता
हृदय की विकल वेदना को
भींगी पलकों पे छोड़ जाता

क्रीड़ा से पीड़ा लेकर जब
सुहागिन रोती घर कोने में
तब सिंधु की नवजीवन धार
छोड़ बुलबुले रुक जाती है ।

——OOOO——
टी .पी . तरुण

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