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23 May 2023 · 1 min read

*दुपहरी जेठ की लेकर, सताती गर्मियाँ आई 【हिंदी गजल/गीतिका】*

दुपहरी जेठ की लेकर, सताती गर्मियाँ आई 【हिंदी गजल/गीतिका】

(1)
दुपहरी जेठ की लेकर, सताती गर्मियाँ आईं
पसीना आदमी का यों, बहाती गर्मियाँ आईं
(2)
सुहाना है बहुत ज्यादा, सुबह का शाम का मौसम
मगर लू से दुपहरी में, डराती गर्मियाँ आईं
(3)
करिश्मा एक कुदरत का, है यह तरबूज-खरबूजे
सभी को फल अनोखे यह, खिलाती गर्मियाँ आई
(4)
कहीं शरबत की खुशबू है, कहीं लस्सी की है रौनक
चलन को चाय के फिर भी, चलाती गर्मियाँ आईं
(5)
पहाड़ों पर मई और जून में भी ठंड पड़ती है
वहाँ की सैर करने को, बुलाती गर्मियाँ आईं
(6)
अगर जो बर्फ की चुसनी, नहीं खाई तो क्या खाया
बरफ को सातों रंगों से, सजाती गर्मियाँ आईं
(7)
हुई स्कूल की छुट्टी, चले नानी के घर बच्चे
हँसाती मौज-मस्ती फिर, मनाती गर्मियाँ आईं
————————————————–
रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451

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