Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
15 May 2023 · 1 min read

समझदारी

स्कूल से आते ही गोपाल ने झटपट से अपना बैग रखा, कपडे बदले और खाना खाने बैठ गया। आज शाम को उसकी टीम का मैच था दूसरे मोहल्ले की टीम से। इसलिए वो जल्दी से सब ख़त्म कर के मैदान में पहुंचना चाहता था। खाना खतम करते ही जैसे ही जूते पहने और बैट बाहर जाने को उठाया उसकी मम्मी ने उसे टोका – अरे बेटा कहा जा रहा है ? आज तेरे पापा काफी देर से आएंगे, जा कर बाजार से सब्जी ले आ। पहले ला कर दे दे फिर चले जाना खेलने के लिए ।
अब गोपाल सोच में पड़ गया कि अगर पूरा मैच खेल कर आया और सब्जी लेने गया तो बहुत देर हो जाएगी और फिर माँ टाइम पर खाना नहीं बना पायेगी। और अगर अभी लेने गया तो मैदान पर टाइम पर नहीं जा पाउँगा और मैच शुरू हो जायेगा। पापा बेचारे थक कर आएंगे और उन्हें खाना भी तुरंत चाहिए। माँ को और भी काम है वो जा नहीं सकती।
इसी सोच में डूबा, उसे वो रात याद आगयी जब वो काफी बीमार था और पूरी रात सो नहीं पाया था,तब कैसे उसके पापा मम्मी पूरी रात उसके साथ जगे थे।
उसने झट से बैट को साइड में रखा और माँ के हाथ से थैला लेते हुए कहा ,” अच्छा माँ, आप थोड़ा सा आराम कर लो मैं बाजार से सब्जी ले के आता हू। “
अब गोपाल मन ही मन अपने को समझदार महसूस कर रहा था।

Loading...