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19 Feb 2024 · 1 min read

तब बसंत आ जाता है

जब मौन के बाग में
पक्षियों का कलरव गाता है
जब सूने सूने कानों को
प्रकृति का संगीत लुभाता है
तब बसंत आ जाता है

जब पीले पत्तों के रिक्त में
नया कोंपल मुस्कुराता है
जब खिलता हुआ फूल
उम्मीदें भर इठलाता है
तब बसंत आ जाता है

जब आमों के बौंरों में छुप
अनंग बाण चलाता है
जब बागों का खिलता रंग
नेहों को पास बुलाता है
तब बसंत आ जाता है

जब कमल पाने की खातिर
दरिया का डर न सताता है
जब डूबते हुए मन को
सहारा तिनके का मिल जाता है
तब बसंत आ जाता है

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