मुहब्बत की कीमत
मुहब्बत
की है उसने
ज़िल्लत भी उठाई,
कौम,रहनुमा
सबने मारने की
कसम है खाई।
किसी ने तलवार
किसी ने बंदूक उठाई,
सबने मिलके की
हाथापाई।
मुहब्बत ज़बान है
अमन की
सुकूँ की
मुहब्बत से
कायम है ये जहाँ।
मुहब्बत न होती
तो न होती क़ायनात,
न होता शज़र
न ये बशर।