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31 Mar 2023 · 4 min read

#अनंत_की_यात्रा_पर

#अनंत_की_यात्रा_पर
■ सास : ससुराल में अंतिम आस
【प्रणय प्रभात】
वैसे तो हर रिश्ते का अपना बजूद है। अपनी अलग अहमियत भी। बावजूद इसके “सास” का रिश्ता हर दामाद के लिए बेहद ख़ास होता है। कहा जाता है कि ससुराल में दामाद की अंतिम आस “सास” ही होती है। जिसके रहने तक ससुराल को वो अपना दूसरा आशियाना मान सकता है। हालांकि ससुराल जीवन-पर्यंत ससुराल रहता है पर सास के बिना उसकी मिठास लगभग ख़त्म सी हो जाती है। जिसकी प्रतिपूर्ति कोई और नहीं कर सकता।
आज मेरे ससुराल की मिठास राम जी ने अपने पास बुला ली। अपने चरण-कमलों में वास देने के लिए। उस दैहिक ताप से मुक्ति देने के लिए, जिससे एक दिव्यात्मा लगभग एक साल से बेहाल थी। दुःखद ख़बर आज सुबह जागने के साथ ही मिली।
पीड़ा इस बात की रही कि बीती रात उज्जैन के लिए रवाना हुईं श्रीमती जी महज दो-चार मिनट के अंतर से उनसे अंतिम मुलाक़ात से वंचित रह गईं। बीच में श्री महाष्टमी व श्री राम-नवमी न होती तो शायद ऐसा न होता। हालांकि एक सप्ताह पूर्व दोनों की भेंट हो चुकी थी। जबकि मैं क़रीब एक पखवाड़ा पूर्व हॉस्पीटल में उनके दर्शन कर आया था। आख़िरी बार मिल रहा हूँ, यह कल्पना तक भी नहीं थी। होनी-अनहोनी हरि-इच्छा के अधीन है। मानव अपनी सम्पूर्ण सामर्थ्य लगा कर अपना दायित्व हरसंभव तरीके से निभा सकता है। जीवन की डोर और साँसों की सौगात पर सर्वाधिकार ईश्वरीय है। जिसे शिरोधार्य करने के सिवाय कोई चारा नहीं किसी के पास।
हरेक रिश्ते को शिद्दत से निभाने, हर प्रसंग में आने-जाने, जीवन के हर रंग का संग निभाने और सब कुछ स्वाद लेकर रुचि से खाने का गुण आपकी बड़ी बेटी ने निस्संदेह आप ही से पाया। मंझली और छोटी बिटिया ने भी। प्रारब्ध-वश जीवन का सांध्यकाल शारीरिक दृष्टि से यक़ीनन तक़लीफ़देह रहा पर सुकर्मो का सुफल बेटे और बहू द्वारा की गई अथक सेवा ने दिया। जो इस आपदा को टालने के लिए पूरी क्षमता से संघर्षरत रहे। बेटियों ने भी दौड़-धूप, प्रार्थना-उपासना करने व मानसिक सम्बल देने में कोई क़सर नहीं छोड़ी। बाक़ी सब भी अपने-अपने मोर्चे पर ज़िम्मेदारी से जूझे, जो अंततः हताश हैं।
आपके स्नेहपूर्ण सान्निध्य में व्यतीत 32 साल जीवन की पूंजी हैं। वड़ोदरा से उज्जैन (श्री सोमनाथ, श्री नागेश्वर, श्री पावागढ़, श्री द्वारिका धाम) प्रवास से जुड़ी आपकी स्मृतियां मानस-पटल से एलबम तक सुरक्षित हैं। अगला प्रवास आपके साथ काशी, अयोध्या और रामेश्वरम धाम का मानसिक संकल्प में था। जिसे समय-सुयोग बनने पर आपके बिना नहीं, आपके सूक्ष्म संरक्षण में पूर्ण करेंगे। यदि राम जी ने चाहा तो। आपके रूप में एक सहज-सरल वात्सल्य से परिपूर्ण माँ को खोने की टीस आजीवन रहेगी। साथ ही एक सुधि व रसज्ञ पाठक का अभाव भी। जिनकी निगाहों से मेरी हरेक पोस्ट बेनागा गुज़रती थी। उन पर प्रोत्साहक व प्रश्नात्मक प्रतिक्रियाएं कॉल पर श्रीमती जी को और उनसे मुझे मिलती रहती थीं। जिनमें जिज्ञासाएं व सरोकार समाहित होते थे। ख़ास तौर पर मेरी सेहत, गतिविधि और दैनिक प्रसंगों पर केंद्रित। यहां तक कि हमारी गृहवाटिका से सम्बद्ध गिल्लू (गिलहती) कुटुम्ब और गौरैयाओं को लेकर भी। यह सिलसिला ज़रूर ख़त्म हो गया अब।
आहत, व्यथित और व्यग्र हूँ, जिसे सिर्फ़ महसूस कर सकता हूँ, व्यक्त नहीं। मृत्यु प्रबल है और अटल भी। संयोग के सुंदर सिक्के का दूसरा पक्ष वियोग ही है। तथापि किसी न किसी मोड़ पर, किसी न किसी स्वरूप में मिलने-मिलाने की गुंजाइशें कदापि ख़त्म नहीं होतीं। हमारी सत्य-सनातन व शाश्वत मान्यताओं के अनुसार। जिनकी पुष्टि मेरे जीवन-दर्शन से जुड़े एक गीत का आख़िरी छंद भी करता है। जो लेखनी को विराम देने से पूर्व अपनी धर्ममाता श्री के श्रीचरणों में सादर समर्पित करना चाहता हूँ :–
“श्वेत-श्याम पर रात-दिनों के, पंछी उड़े समय का।
मृत्यु शाश्वत, सत्य, सनातन। काम भला क्या भय का?
तन नश्वर है, रूह अमर है, लेगी जनम दुबारा।
मौत अजेय, अटल होती पर, जीवन कभी न हारा।।
जीवन का झरना बहता जाए, साँसों की जलधारा।
मुट्ठी से ज्यों रेत सरकती, जीवन बीते सारा।।”
हम आत्मा की अमरता से परिचित हैं और सनातन परंपरा व चिरंतन सृष्टि के सिद्धांत से अवगत भी। आज हताश अवश्य हैं, किंतु आपके आभास से जुड़ी एक आस और विश्वास के साथ। मानस-भाव से आपकी छवि के अंतिम दर्शन करते हुए आपके प्रति कृतज्ञतापूर्ण प्रणाम। भावपूरित श्रद्धासुमन और समस्त संतप्त परिजनों के प्रति आत्मिक सम्वेदनाएँ भी। गहन विषाद के इस दारुण काल मे साहस, संयम और सम्बल बाबा महाकाल देंगे ही। अंत में निवेदन और। इसे मृत्यु नहीं निर्वाण (मुक्ति) मान कर धैर्य धारण करना ही श्रेयस्कर है। यह बात भी मैं ही कह सकता हूँ। जो स्वयं अचेतन व अवचेतन स्थिति में पूर्ण चेतना के साथ जीवन-मृत्यु के बीच संघर्ष और उसकी यंत्रणा का जीवंत भुक्तभोगी रहा हूँ। देह की पीड़ा का मूक और मुखर साक्षी भी। शेष-अशेष…!!
■प्रणय प्रभात■
श्योपुर (मध्यप्रदेश)

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