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9 Dec 2022 · 1 min read

“ चुप मत रहना मेरी कविता ”

डॉ लक्ष्मण झा परिमल
=================
शब्द मेरे
शिथिल थे
विचार मेरे
स्तब्ध थे
भावना
मलिन हुई
सुर मेरे
हिले थे
कविता
सुसुप्त थी
कलम भी
शांत थी
मानो
हड़ताल था
कुछ ऐसी
ही बात थी
मैं नहीं
रह सकता
उसे नहीं
छोड़ सकता
आराम है
हराम मेरा
लिखना नहीं
छोड़ सकता
शब्द को
जगाना है
विचारों को
लाना है
भावना
सुर को अपने
हृदय में
बसाना है
कविता सबको
जगाएगी
प्रभातफेरी
कराएगी
सबको अपने
कर्तव्यों का
तत्क्षण
ध्यान दिलाएगी
कविता जब
मूक होगी
सत्ता में फिर
चूक होगी
लोग फिर
अशांत होंगे
जनता में
फिर भूख होगी
शासक सब
भूल जाएंगे
हम सब फिर
टूट जाएंगे
लेखनी से ही
सब तंत्र को
अपनी बातें
सबको समझाएंगे !!
==================
डॉ लक्ष्मण झा ‘परिमल ”
साउंड हेल्थ क्लिनिक
एस ० पी ० कॉलेज रोड
दुमका
झारखंड
भारत
09.12.2022

Language: Hindi
386 Views
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