कोमल अग्रवाल की कलम से ' इतना सोचा तुम्हें '
फूलों की खुशबू सा है ये एहसास तेरा,
ज्यामिति में बहुत से कोण पढ़ाए गए,
तुम रूठकर मुझसे दूर जा रही हो
क्या भरोसा किया जाए जमाने पर
जब कोई महिला किसी के सामने पूर्णतया नग्न हो जाए तो समझिए वह
मुफलिसो और बेकशों की शान में मेरा ईमान बोलेगा।
ढल गया सूरज बिना प्रस्तावना।
Pt. Brajesh Kumar Nayak / पं बृजेश कुमार नायक
'वर्क -ए - ' लिख दिया है नाम के आगे सबके
"हम सभी यहाँ दबाव में जी रहे हैं ll
मिट जाए हर फ़र्क जब अज़ल और हयात में
यह शोर, यह घनघोर नाद ना रुकेगा,
आज बेरोजगारों की पहली सफ़ में बैठे हैं
सोच हमारी अपनी होती हैं।
क्यों नहीं निभाई तुमने, मुझसे वफायें
अभिव्यञ्जित तथ्य विशेष नहीं।।