मुस्कुराहट

मुस्कुराहटो पर इस क़दर फ़िदा हूं में
कभी पागल तो कभी दिवाना हूं में
करूं हर लम्हा रुख़-ओ-रूखसार की बाते
तसव्वुर में विसाल -ए- यार की बाते
नहीं समझ में आता हैं मैं कहां हूं मैं
काग़ज़ क़लम से दिरुबा दिलबर
ख़ून -ऐ- जिगर से नाम लिखकर
मेरी जां फना होता हूं मैं
कल्ब में बेहद कमी साहिब तेरी
आधूरी किस्मत जानम सजा मेरी
तेरे बिन दिलबर अधूरा हूं मैं
दिवाना तुने “ज़ुबैर” को कर डाला
बना बैठा खुदको तुझ जैसा
न पूछो मै क्या कहता हूं मैं
लेखक – ज़ुबैर खांन…..📝