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25 Sep 2022 · 1 min read

✍️जिगरबाज दिल जुड़ा है

जब पता है के एक शख्स मेरे भीतर का साथ खड़ा है
अब क्या फिक्र मेरे खिलाफ कौन साजिशों में पड़ा है

दुनिया के खुदगर्जी का दस्तूर अब हमें मालूम हुवा है
कदम संभले है मगर दिल बदस्तूर टकराने पे अड़ा है

जेहन की ख़लिश है हमने पड़े रास्तों से ख़्वार उठाये
कैसे कहे अपने ही पैरो पे अपनी कुल्हाड़ी की पीड़ा है

अभी तो शुरुवात थी मेरे सफर की काफिला पीछे था
रक़ीबो के दिल जले और ये कारवां कही ओर मुड़ा है

‘अशांत’ हर जंग इँसा हौसलों के दम पर ही जीता है
मेरी कोशिशों के साथ भी ये जिगरबाज दिल जुड़ा है
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©✍️’अशांत’ शेखर
25/09/2022

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