आँखें
तुम्हारी आँखों में बसी सीरत बोली थी ।
ख़ामोशी से दिल में तुमको उतार लूँ।।
आँखें न होती दुनिया में खूबसूरती की तारीफ न करता कोई,
ये कसूर इन आंँखों का है दिल में उतरने का रास्ता दे देती हैं।
तुम्हारी आंँखों ने पलक झपक कर देखा एक पल के लिए,
उस पल में आज भी कैद हो गया हूँ जिंदगी भर के लिए।
आँखें दो क्यों होती है देखने के लिए बताओ “बिपिन”,
जिस दिन चार हो जाए समझो नींद हो जाएगी मुश्किल।
रचनाकार
बुद्ध प्रकाश
मौदहा हमीरपुर।