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23 Sep 2022 · 1 min read

हम ऐसे ज़ोहरा-जमालों में डूब जाते हैं

ग़ज़ल
हम ऐसे ज़ोहरा-जमालों में डूब जाते हैं
उन आँखों में कभी बालों में डूब जाते हैं

जो मुस्कुराने से बनते हैं गालों पर डिंपल
तो हम तेरे उन्हीं गालों में डूब जाते हैं

किया है पार समंदर तो बारहा हमने
बस एक तेरे ख़यालों में डूब जाते हैं

चमकते ख़ूब ही देखे सियाह रातों में
ये जुगनू दिन के उजालों में डूब जाते हैं

जवाब मिलते नहीं है कभी कोई हमको
सवाल भी तो सवालों में डूब जाते हैं

निवालों के लिए करते हैं जो कड़ी मेहनत
वो शाम होते पियालों में डूब जाते हैं

‘अनीस’ अपनी वो मंज़िल को पा नहीं सकते
जो अपने पाँव के छालों में डूब जाते हैं
– अनीस शाह ‘अनीस’

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