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11 Sep 2022 · 1 min read

दो शे'र

मेरा चाँद तो बहुत शर्मीला है ।
चाँद रातों को दीदार नहीं होते ।

जो आ जाता एक बार फ़लक पे ।
हर शब हम यूं बीमार नहीं होते ।।

©डॉक्टर वासिफ़ काज़ी ,इंदौर
©काज़ीकीक़लम

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