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7 Jul 2022 · 1 min read

*दो बूढ़े माँ बाप (नौ दोहे)*

दो बूढ़े माँ बाप (नौ दोहे)
—————————
(1)
गलियों में बच्चे नहीं ,दिखते नहीं जवान
बूढ़ों के हैं घर यहाँ ,सन्नाटा सुनसान
(2)
बच्चों का था कैरियर ,कैसे रहते पास
घर में दो बूढ़े बचे ,बेबस टकते आस
(3)
गलियों के घर की सुनो ,भरते गहरी साँस
दो बूढ़े बस दिख रहे ,जैसे हों दो बाँस
(4)
बूढ़ा बेचारा मरा ,चली देह शमशान
बुढ़िया अब घबरा रही ,शायद बिके मकान
(5)
बेटे तो पढ़-लिख गए ,महानगर में कार
बूढ़े -बुढ़िया रह गए ,गलियों में बेकार
(6)
बेटे-बहुएँ फोन से , करते वार्तालाप
रोज सँवर कर बैठते ,दो बूढ़े माँ-बाप
(7)
पुरखों का युग खा गए ,महानगर-परदेश
बच्चों के हैं अब बिना ,बूढ़ों को यह क्लेश
(8)
महानगर में फ्लैट है ,किस्तों पर है शान
बेटा सोचे गाँव का , कैसे बिके मकान
(9)
छोटे शहरों की गली ,पतली थी दमदार
अब फ्लैटों में रह रहे ,कैदी – सा संसार
——————————–
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451

Language: Hindi
474 Views
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