Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
1 May 2024 · 1 min read

बदनाम

शीर्षक – बदनाम … ******************** सच तो जीवन बदनाम है। जीना हम सभी को पड़ता है। बदनाम सोच का फर्क है। बदनाम न तेरा न मेरा नाम हैं। शारीरिक भूख तो बदनाम करती हैं। समय के साथ बदनाम हो जाते हैं। हम सोचते बदनाम जीवन होता है। मन भावों में बदनाम होते हैं। बदनाम सबकी अपनी सोच होती हैं। न कर्म न धर्म बस जिंदगी गुज़र हैं। सच तो बदनाम नहीं मालूम होता हैं। धन और फरेब मन में बदनाम करते हैं। हां बदनाम तो समय कर जाता हैं। बंद मुट्ठी और कुदरत कह जाती हैं। हां सच यही तो बस जिंदगी बदनाम होती है। ********************** नीरज अग्रवाल चंदौसी उ.प्र

Loading...