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21 Feb 2024 · 1 min read

मैं

मैं अभी उठा हूँ आसमान देखकर
बैठा हूँ अभी बस जहान देखकर

गुज़रा था मैं तेरे दरवाज़े दस्तक दी
फिर चला अजनबी निशान देखकर

कैसे कह दूँ कि फ़िक़्र नहीं कोई
डर है तीर – ओ – कमान देखकर

तेरी चुप्पी तेरे आंसू सर आंखों पर
महफ़िल में चुप हूँ बेईमान देखकर

भले ही न तुझको कोई आवाज़ लगाऊं
समझ लेता हूँ घर को दालान देखकर

अजय मिश्र

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