Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
30 Jun 2022 · 1 min read

चामर छंद "मुरलीधर छवि"

गोप-नार संग नन्दलालजू बिराजते।
मोर पंख माथ पीत वस्त्र गात साजते।
रास के सुरम्य गीत गौ रँभा रँभा कहे।
कोकिला मयूर कीर कूक गान गा रहे।।

श्याम पैर गूँथ के कदंब के तले खड़े।
नील आभ रत्न बाहु-बंद में कई जड़े।।
काछनी मृगेन्द्र लंक में लगे लुभावनी।
श्वेत पुष्प माल कंठ में बड़ी सुहावनी।।

शारदीय चन्द्र की प्रशस्त शुभ्र चांदनी।
दिग्दिगन्त में बिखेरती प्रभा प्रभावनी।।
पुष्प भार से लदे निकुंज भूमि छा रहे।
मालती पलाश से लगे वसुंधरा दहे।।

नन्दलाल बाँसुरी रहे बजाय चाव में।
गोपियाँ समस्त आज हैं विभोर भाव में।।
देव यक्ष संग धेनु ग्वाल बाल झूमते।।
‘बासुदेव’ ये छटा लखे स्वभाग्य चूमते।।
=================
चामर छंद विधान –

“राजराजरा” सजा रचें सुछंद ‘चामरं’।
पक्ष वर्ण छंद गूँज दे समान भ्रामरं।।

“राजराजरा” = रगण जगण रगण जगण रगण
पक्ष वर्ण = पंद्रह वर्ण की वर्णिक छंद।

(गुरु लघु ×7)+गुरु = 15 वर्ण

चार चरण दो- दो या चारों चरण समतुकान्त।
**********************

बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’ ©
तिनसुकिया

Loading...