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18 Mar 2022 · 1 min read

आज़ाद गज़ल

दुशमन उन्हें पसंद बहुत है
अपने यहाँ जयचन्द बहुत है।
जो है अंधा ,बहरा और गूँगा
आवाज़ उसकी बुलंद बहुत है ।
जिसने सीखा है सच छिपाना
समझ लो के हुनरमंद बहुत है।
हर मौके का फायदा है उठाता
यारों ऐसे ज़रूरत मंद बहुत है।
माज़ी,हाल,मुस्तकबिल खंगाले
देखिए आज करमचंद बहुत है।
भले भूल जाता है मुश्किलों में
मगर वैसे वो फिक्रमंद बहुत है ।
-अजय प्रसाद

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