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23 Feb 2022 · 1 min read

ख़्वाब

काश ख़्वाबों को हैसियत पता होती देखनेवाले की
न दिल टूटने की झंझट होती
न अश्क़ बहने का मसअला।

हर कोई अपनी औक़ात के दायरे में रहता
तालाब में समंदर बनने की कोई हसरत न जागती
कोई जुगनू चाँद के साथ मुक़ाबला न करता।

दिन भर की थकन उतारने को
रात तकिये पर सिर रखते और खो जाते
खो जाते अपनी औक़ात के ख़्वाबों के जहाँ में।

मगर इतनी दरियादिली ख़्वाबों के दिल में कहाँ
किसी का चैन देखकर ये ख़ुद बे-चैन हो जाते है
उन्हें तो बस मज़ा आता हैं
देखनेवाले का हाल देखकर।

-जॉनी अहमद ‘क़ैस’

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