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4 Feb 2022 · 1 min read

ग़ज़ल:- जिंदा रखना है मुझे तो ज़िन्दगी तक ले चलो...

जिंदा रखना है मुझे तो ज़िन्दगी तक ले चलो।
मर न जाऊं जब तलक मैं उस खुशी तक ले चलो।।

नींद गहरी मिल सके ग़र तीरगी तक ले चलो।
ज़िन्दगी तो बेवफा है मौत ही तक ले चलो।।

जो बुझाती प्यास को तिश्नालबी पहचान कर।
ग़र मिले ऐसी नदी तो उस नदी तक ले चलो।।

स्वाति बूंदों के लिए मुझको पपीहा मत बना।
बुझ न पाए प्यास मेरी तिश्नगी तक ले चलो।।

आसमाॅं को शायरों ने नाप डाला हर कभी।
छोर जिसका हो नहीं, उस आख़री तक ले चलो।।

दिलपरी-औ-दिलबरी से ‘कल्प’ अब दिल भर गया।
होश़ मुझको अब न आये, शीशा-परी तक ले चलो।।

✍ अरविंद राजपूत ‘कल्प’

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