सच्ची शान
हर क्षण गांधी नेहरू का अपमान ढूंढते हैं
खुद कभी लड़े नही और अभिमान ढूंढते हैं।
युद्ध की लालसा में नेत्रहीन हो चुके हैं
सीमाओं पर कितने मरे जवान ढूंढते हैं।
मंदिरों में अब ऐसे लोगों की बड़ी भीड़ है
विष बांटकर जो शिव का वरदान ढूंढते हैं।
खून के प्यासे हुए हैं छोटी सी तकरार पर
चुपचाप कैसे लेनी है जान ढूंढते हैं।
ये वही लोग हैं जिन्होंने बस्तियां तबाह की
गरीब है कि उनमें अपना भगवान ढूंढते हैं
राज कोई और करे और तख्त पर बैठे कोई
कठपुतलियों की तरह बेजुबान ढूंढते हैं।
उनमे खुद में झांकने की हिम्मत नही जरा भी
जो पकड़ने को औरों के गिरहबान ढूंढते हैं।
गांव में मां बाप का महल पड़ा वीरान है
हम हैं कि शहर में छोटा मकान ढूंढते हैं।
‘विनीत’ वतन के नाम कर दे अपनी जिंदगी
इसी में हम तेरी सच्ची शान ढूंढते हैं।
-देवेंद्र प्रताप वर्मा ‘विनीत’