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9 Jan 2022 · 1 min read

सीख बरगद से

1222 1222 1222 1222

मेरी जब इश्क़ की दीवानगी बढ़ने लगी हद से।
मुसलसल दिल हुआ छलनी मुहब्बत में मिलीं ज़द से।।

हुनर स्थान खुद ब खुद बना लेता है मंज़िल पर।
कभी सीढ़ी सफलता की नहीं चढ़ना खुशामद से।।

भरोसा बाजुओं पर और बस दिल में तमन्ना हो।
कभी भी देश की सेवा न कुर्सी से न हो पद से।।

यही चर्चे हुए नुक्कड़ गली चौराहों में उसके।
पतन होना ही था वो आदमी था चूर जब मद से।।

मिटा देंगे तेरा नाम-ओ निशाँ तू ध्यान से सुनले।
जो झंडे में लिपटकर अब कोई लौटेगा सरहद से।।

बड़ी आंखें दिखा मुझको बड़ी बातें वो करता है।
जरा सा ही बड़ा क्या हो गया बेटा मेरे क़द से।।

न उसको नींद रातों में न दिन में चैन आता है।
दिखाबे के लिए करता जो ज़्यादा खर्च आमद से।।

कहेंगे ‘ज्योति’ कुछ भी लोग उनका काम है कहना।
अडिग रहना किसी भी हाल में तू सीख बरगद से ।।

✍?श्रीमती ज्योति श्रीवास्तव

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