Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
26 Nov 2021 · 1 min read

हैं कलम में जोड़ इतना,की धुल चटा दूं पर्वत को

हैं कलम में जोड़ इतना की धुल चटा दूं पर्वत को
हैं प्रेम का सागर मन में, डुबा के मार दूं नफरत को
ऐ मुझे ना समझने वाले मगरुर इंसान
हासिल किये न आराम से बैठुंगा अपने मन की हसरत को

रौशन राय के कलम से

Loading...