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4 Oct 2021 · 1 min read

मुक्तक

नफ़रत की आग फिर से लगाने में लगे हैं,
ये नक़ाबपोश शहर मेरा जलाने में लगे हैं ,
सारे बेईमान,बेलिबास हैं तहज़ीब के बग़ैर
हज़ारो झूठ गढ़ पहचान छुपाने में लगे हैं,,

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