आज़ाद गज़ल
तारीफ से कर दिया पहले तरबतर
तब जाके हुए हैं ‘वो’ मेहरबाँ हमपर।
अब ये ज़माना चाहे या न चाहे यारों
हमनें ज़माने को है बनाया हमसफर ।
लाख दर्द मिले,सब्र से लिया है काम
अश्क़ों ने भी किया रहम आंखों पर ।
यूँ तो कई बार लगा मंजिल करीब है
बस इसी भरम में फिरते रहे दरबदर ।
संभल तो गई ज़िंदगी तुम्हारी अजय
हाँ भले ही संभली हो ठोकरें खा कर।
-अजय प्रसाद