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7 Sep 2021 · 1 min read

$ग़ज़ल

16- बहरे रजज़ मुसद्दस सालिम मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन
वज़्न/मीटर- 2212/2212/2212

कैसा अज़ब ये हादसा अब हो गया
हर आदमी ख़ुद में यहाँ रब हो गया//1

चालाकियाँ सब सीख ली डरता नहीं
अपने लिए तो सुब्ह भी शब हो गया//2

कितने मुखौटे ओढ़ कर छलता चले
बहरूपिये-सा रूप मज़हब हो गया//3

परिणाम पढ़ता है बुराई का यहाँ
फिर भी बुरा क्यों बेअदब फब हो गया//4

सपना लगे घटना घटी हर पल यहाँ
हर हाल हम यूँ पूछते कब हो गया//5

तेरी नहीं मेरी नहीं सबकी दशा
जो घर कलह में शोर मतलब हो गया//6

‘प्रीतम’ अगर ख़ुद को समझ ले आदमी
इस ज़िंदगानी के लिए नब हो गया//7

आर.एस. ‘प्रीतम’
सर्वाधिकार सुरक्षित ग़ज़ल

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