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8 Aug 2021 · 1 min read

ताज्जुब

व्यंग्य भी हास्य भी.
कविता.
ताज्जुब.
.
माना कि तुम समझदार हो,
सामने वाले को भी तो..
बेवकूफ मत समझो…
सरकारी कुछ नहीं रहेगा.
न शिक्षा, न ही चिकित्सा.
हकीकत में बहुत बडे शोर हो.
चीखें दब रही है मजदूर की.
कहो ना..
तुम और हो.

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